
आजकल जहां मासिक धर्म (पीरियड्स ) के ऊपर "padman" जैसी फिल्में बनने लगी है मल्टीपल ऐड चलाए जा रहे है ताकि इस बारे में सबको जागरुक कर सके वही आज भी कई जगह ऐसे है जहां पीरियड्स के taboo topic है आज भी कई जगह ऐसी है जहां महिलाए और लड़कियां इस बारे में खुलकर बात करने से शर्माते है और इससे जुड़ी समस्याओं को छिपाने की कोशिश करते है ।कई दुकानों और मेडिकल स्टोर पर रखना पसंद नहीं करते और रख भी लेंगे तो लोगो के सामने उन्हे बेचने में शर्म आती है। इस taboo की वजह से लोगो के मन में कई गलतफहमियां है जो न सिर्फ महिलाओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है बल्कि इससे समाज को भी नुकसान पहुंचाता है । आज की मेरी ये इसी taboo के ऊपर है
माया उम्र 15 , साल गोरा रंग बड़ी बड़ी काली आखें, घने लम्बे बाल कुल मिलाकर बहुत ही सुंदर, माया बचपन से ही एक जिज्ञासु लड़की है उसे अपने आसपास की चीजे के बारे जानने का शौक रहता जैसे जैसे माया बड़ी होती गई उसे मासिक धर्म की इस रहस्यमयी प्रक्रिया के बारे में पता लगा और उसे इस बारे में और जानने की इच्छा होती इसलिए वो अपनी मां, बड़ी बहन ,दोस्त और आसपास की महिलाओं से इस बारे में पूछा करती पर वो उसकी बातो का जवाब देने की जगह उसे ही डाट कर छुपा करा देते ।
माया का गांव
पहाड़ों पर बसा एक गांव ,चारों ओर से जंगलों से घिरा था और जहां जाने के लिए केवल एक ही सड़क मार्ग था वो भी खराब मौसम में बंद हो जाता था । मार्ग सही से न होने , पहाड़ पर होने और जंगलों से घिरे होने की वजह से यहां सरकार की स्कीम समय से नही पहुच पाती थी इस कारण ये जगह नक्सलवाद से भी प्रभावित रहता और यहां शिक्षा की भी कमी थी क्योंकि ऐसी जगह पर कोई भी शिक्षक रहना नही चाहता। इस वजह से गांव में मासिक धर्म के बारे में बात करना एक वर्जित विषय था।
गांव में प्रत्येक घर के सामने एक छोटा सा कमरा बना होता था जिसमे महिलाए अपने मासिक धर्म के दौरान रहती उन्हे इस दौरान घर के अंदर प्रवेश करने नही दिया जाता घर के किसी भी काम को करने की मनाही, भोजन बनाने से मनाही, फर्नीचर पर बैठने से मनाही उसे केवल घर के बाहर के कुछ काम करने की इजाजत होती , मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नही, पूजा पाठ के समान को हाथ लगाने की अनुमति नही होती। माया को हमेशा से यह प्रथा अनुचित और भ्रमित करने वाली लगती।
एक दिन माया की तबियत खराब हो जाती है उसके पापा उसे गांव की ही एक बूढी औरत के पास लेकर जाते है जिसे गांव में सब अम्मा कह कर बुलाते थे। अम्मा एक बुद्धिमान उपचारक थी जो कई वर्षों से गाँव में रहती थी, गांव में जब भी कोई बीमार होता या किसी को चोट लगती तो वो अम्मा के पास ही आते और वो उनका अच्छे से उपचार करती । माया भी उनके दी हुई औषधियों से जल्दी ही ठीक हो गई माया जब से उनसे मिली थी तब से वो उनसे बहुत प्रभावित हुई अब वह रोज उनसे मिलने जाया करती और अपनी जिज्ञासाओं के बारे में उनसे कुछ न कुछ पूछती ।
एक दिन माया जब अम्मा के पास अपनी किसी जिज्ञासा के बारे में पूछने के लिए गई, जब वो वहां पहुंची तो उसने देखा कि अम्मा घर के आंगन में बैठी थी और आसमान की ओर देख रही थीं माया उनके पास गई और उनके पास बैठ गई। और पुछने लगी ,अम्मा आप क्या देख रहे हैं? माया का सवाल सुनकर अम्मा उसे बताने लगी, मैं चाँद देख रही हूँ, चंद्रमा का हमारे शरीर के चक्रों से एक शक्तिशाली संबंध है। यह हमारे मासिक धर्म चक्रों की तरह ही बढ़ता और घटता है।"
माया उनकी ये बात सुनकर चकित हो गई और अम्मा को इस बारे में और बताने के लिए बोलने लगी तो अम्मा उसे बताने लगी कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो एक महिला के शरीर में गर्भावस्था की तैयारी के रूप में होती है इसमें शर्म या डरने की कोई बात नहीं है ना ही यह कोई छुपाने वाली चीज है , ना ही कोई बीमारी है बल्कि यह तो स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का संकेत है इसमें अशुद्ध हो जाने जैसा कुछ नही है ।
माया अम्मा की बातों से और उनकी मासिक धर्म के लिए विचार सुनकर अधिक सहज महसूस करने लगी अब वह मासिक धर्म को अपने शरीर के चक्र के एक स्वाभाविक हिस्से के रूप में देखने लगी, न कि किसी शर्मिंदगी या छुपाने के लिए।
माया ने अम्मा से जो कुछ सुना सीखा अब वह उसे अपने घर में अपनी बहन , मां और दोस्तो बताने लगी और धीरे धीरे गाँव की अन्य महिलाओं को बताना और उन्हे इस बारे में जागरूक करना शुरू किया। स्कूल के फंक्शन सामाजिक समारोह में जाकर इस बारे में लोग को जागरूक करना सुरू किया उसने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं से दूर रहने की प्रथा के खिलाफ बोलना शुरू किया, और दूसरों को अपने शरीर और मासिक धर्म की प्राकृतिक प्रक्रिया को अपने शरीर के चक्र के एक स्वाभाविक हिस्से के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया ।
धीरे-धीरे ही सही लेकिन निश्चित रूप से, माया का संदेश पूरे गाँव में फैल गया । महिलाएं अपने शरीर के साथ अधिक सहज महसूस करने लगीं और इस दौरान होने वाली दिक्कतों के बारे में सहज रूप से बात करने लगी और मासिक धर्म के दौरान महिलाओं से दूर रहने का चलन खत्म होने लगा।
कुछ ही समय में , माया की बहादुरी और ज्ञान ने उसके अथक प्रयास ने गाँव की संस्कृति को बदलने में विवश कर दिया। महिलाओं को अब अपने शरीर या मासिक धर्म की प्राकृतिक प्रक्रिया पर शर्म नहीं आती थी, वे इस बारे में खुलकर बात करने लगी इसे स्वास्थ्य और जीवन शक्ति के संकेत के रूप में सबने स्वीकार किया। माया ने अपने गांव को सिखाया कि मासिक धर्म कोई बीमारी, डरने या छुपाने की चीज नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के जीवन का एक स्वाभाविक और जरूरी हिस्सा है ।
ये कहानी तो एक गांव की है किंतु कई सिटीज भी ऐसे है जहां लोग पीरियड्स के बारे में खुलकर बात नही करते ।
धन्यवाद !!!!!!!!!!!!!





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